".... खड़ीबोली दो विभिन्न रूपों में सारे प्रान्तों में बोली जाती है । जब उसमें फारसी शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया जाता है और वह फारसी लिपि में लिखी जाती है तो वह उर्दू कहलाती है , जब वह बाह्य मिश्रण से अछूती होती है और नागरी लिपि में लिखी जाती है , तब वह हिंदी कहलाती है। -- -- भारतेंदु हरिश्चन्द्र महावीर प्रसाद द्विवेदी द्विवेदी जी सरल और सुबोध भाषा लिखने के पक्षपाती थे। उन्होंने स्वयं सरल और प्रचलित भाषा को अपनाया। उनकी भाषा में न तो संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है और न उर्दू-फारसी के अप्रचलित शब्दों की भरमार है । द्विवेदी जी ने अपनी भाषा में उर्दू और फारसी के शब्दों का निस्संकोच प्रयोग किया , किंतु इस प्रयोग में उन्होंने केवल प्रचलित शब्दों को ही अपनाया। प्रेमचन्द प्रेमचन्द उर्दू का संस्कार लेकर हिन्दी में आए थे और हिन्दी के महान लेखक बने। हिन्दी को अपना खास मुहावरा ऑर खुलापन दिया। कहानी और उपन्यास दोनो में युगान्तरकारी परिवर्तन पैदा किए। उन्होने साहित्य में सामयिकता प्रबल आग्रह स्थापित किया। महादेवी वर्मा महादेवी वर्मा का विचार है कि अ...