संदेश

नमस्कार! ( Greetings! )

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         नमस्ते या नमस्कार करने की मुद्रा। नमस्ते या नमस्कार , भारतीयों के बीच अभिनन्दन करने का प्रयुक्त शब्द है जिसका अर्थ है तुम्हारे लिए प्रणाम।  Namaste or Namaskar Gesture. Namaste or Namaskar is common among Indians to greet (to welcome as well as to bid farewell) each other (verbally with the gesture or only verbally) and it means I salute the divine in you.  

सर्वनाम

सर्वनाम सर्वनाम-संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते है। संज्ञा की पुनरुक्ति को दूर करने के लिए ही सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है। जैसे-मैं, हम, तू, तुम, वह, यह, आप, कौन, कोई, जो आदि। सर्वनाम के भेद- सर्वनाम के छह भेद हैं- 1. पुरुषवाचक सर्वनाम। 2. निश्चयवाचक सर्वनाम। 3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम। 4. संबंधवाचक सर्वनाम। 5. प्रश्नवाचक सर्वनाम। 6. निजवाचक सर्वनाम। 1. पुरुषवाचक सर्वनाम जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता या लेखक स्वयं अपने लिए अथवा श्रोता या पाठक के लिए अथवा किसी अन्य के लिए करता है वह पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाता है। पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं- (1) उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला अपने लिए करे, उसे उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-मैं, हम, मुझे, हमारा आदि। (2) मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला सुनने वाले के लिए करे, उसे मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-तू, तुम,तुझे, तुम्हारा आदि। (3) अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला सुनने वाले के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के ल

संज्ञा के विकारक तत्व

संज्ञा के विकारक तत्व जिन तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) का रूपांतर होता है वे विकारक तत्व कहलाते हैं। वाक्य में शब्दों की स्थिति के आधार पर ही उनमें विकार आते हैं। यह विकार लिंग, वचन और कारक के कारण ही होता है। जैसे-लड़का शब्द के चारों रूप- 1.लड़का, 2.लड़के, 3.लड़कों, 4.लड़को-केवल वचन और कारकों के कारण बनते हैं। लिंग- जिस चिह्न से यह बोध होता हो कि अमुक शब्द पुरुष जाति का है अथवा स्त्री जाति का वह लिंग कहलाता है। परिभाषा- शब्द के जिस रूप से किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के पुरुष जाति अथवा स्त्री जाति के होने का ज्ञान हो उसे लिंग कहते हैं। जैसे-लड़का, लड़की, नर, नारी आदि। इनमें ‘लड़का’ और ‘नर’ पुल्लिंग तथा लड़की और ‘नारी’ स्त्रीलिंग हैं। हिन्दी में लिंग के दो भेद हैं- 1. पुल्लिंग। 2. स्त्रीलिंग। 1. पुल्लिंग जिन संज्ञा शब्दों से पुरुष जाति का बोध हो अथवा जो शब्द पुरुष जाति के अंतर्गत माने जाते हैं वे पुल्लिंग हैं। जैसे-कुत्ता, लड़का, पेड़, सिंह, बैल, घर आदि। 2. स्त्रीलिंग जिन संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का बोध हो अथवा जो शब्द स्त्री जाति के अंतर्गत माने जाते

पद-विचार- संज्ञा

पद-विचार सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है, पर जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह स्वतंत्र नहीं रहता बल्कि व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और प्रायः इसका रूप भी बदल जाता है। जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे शब्द न कहकर पद कहा जाता है। हिन्दी में पद पाँच प्रकार के होते हैं- 1. संज्ञा 2. सर्वनाम 3. विशेषण 4. क्रिया 5. अव्यय 1. संज्ञा किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु आदि तथा नाम के गुण, धर्म, स्वभाव का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते हैं। जैसे-श्याम, आम, मिठास, हाथी आदि। संज्ञा के प्रकार- संज्ञा के तीन भेद हैं- 1. व्यक्तिवाचक संज्ञा। 2. जातिवाचक संज्ञा। 3. भाववाचक संज्ञा। 1. व्यक्तिवाचक संज्ञा जिस संज्ञा शब्द से किसी विशेष, व्यक्ति, प्राणी, वस्तु अथवा स्थान का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-जयप्रकाश नारायण, श्रीकृष्ण, रामायण, ताजमहल, कुतुबमीनार, लालकिला हिमालय आदि। 2. जातिवाचक संज्ञा जिस संज्ञा शब्द से उसकी संपूर्ण जाति का बोध हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मनुष्य, नदी, नगर, पर्वत, पशु, पक्षी, लड़का, कुत्ता, गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी, नारी,

शब्द-विचार

शब्द-विचार परिभाषा- एक या अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि शब्द कहलाता है। जैसे- एक वर्ण से निर्मित शब्द-न (नहीं) व (और) अनेक वर्णों से निर्मित शब्द-कुत्ता, शेर,कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा। शब्द-भेद व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द-भेद- व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद हैं- 1. रूढ़ 2. यौगिक 3. योगरूढ़ 1. रूढ़ जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हों तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर। इनमें क, ल, प, र का टुकड़े करने पर कुछ अर्थ नहीं हैं। अतः ये निरर्थक हैं। 2. यौगिक जो शब्द कई सार्थक शब्दों के मेल से बने हों,वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे-देवालय=देव+आलय, राजपुरुष=राज+पुरुष, हिमालय=हिम+आलय, देवदूत=देव+दूत आदि। ये सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं। 3. योगरूढ़ वे शब्द, जो यौगिक तो हैं, किन्तु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। जैसे-पंकज, दशानन आदि। पंकज=पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ

वर्ण-विचार, वर्णमाला

वर्ण-विचार परिभाषा-हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि। वर्णमाला वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं- 1. स्वर 2. व्यंजन स्वर जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं- 1. ह्रस्व स्वर। 2. दीर्घ स्वर। 3. प्लुत स्वर। 1. ह्रस्व स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं। 2. दीर्घ स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है

भाषा, व्याकरण और बोली

1.भाषा, व्याकरण और बोली परिभाषा- भाषा अभिव्यक्ति का एक ऐसा समर्थ साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार जाना सकता है। संसार में अनेक भाषाएँ हैं। जैसे-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी, बँगला,गुजराती,पंजाबी,उर्दू, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि। भाषा के प्रकार- भाषा दो प्रकार की होती है- 1. मौखिक भाषा। 2. लिखित भाषा। आमने-सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं अथवा कोई व्यक्ति भाषण आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तो उसे भाषा का मौखिक रूप कहते हैं। जब व्यक्ति किसी दूर बैठे व्यक्ति को पत्र द्वारा अथवा पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में लेख द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तब उसे भाषा का लिखित रूप कहते हैं। व्याकरण मनुष्य मौखिक एवं लिखित भाषा में अपने विचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है किन्तु इससे भाषा का कोई निश्चित एवं शुद्ध स्वरूप स्थिर नहीं हो सकता। भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं। परिभाषा- व्याकरण वह शास्त्र है

अपनी बात

प्रिय पाठकगण , हिंदी सीखें - मेरा यह ब्लॉग राष्ट्रभाषा हिंदी को समर्पित एक तुच्छ प्रयास है , हिंदी भाषा के प्रति कोई भी जिज्ञासा होने  पर  उसका  समाधान  इस  ब्लॉग के माध्यम से हो सके यही प्रयास है . आपके सुझावों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है . धन्यवाद     

अशुद्ध वाक्यों के शुद्ध वाक्य

अशुद्ध वाक्यों के शुद्ध वाक्य (1) वचन-संबंधी अशुद्धियाँ अशुद्ध शुद्ध 1. पाकिस्तान ने गोले और तोपों से आक्रमण किया। पाकिस्तान ने गोलों और तोपों से आक्रमण किया। 2. उसने अनेकों ग्रंथ लिखे। उसने अनेक ग्रंथ लिखे। 3. महाभारत अठारह दिनों तक चलता रहा। महाभारत अठारह दिन तक चलता रहा। 4. तेरी बात सुनते-सुनते कान पक गए। तेरी बातें सुनते-सुनते कान पक गए। 5. पेड़ों पर तोता बैठा है। पेड़ पर तोता बैठा है। (2) लिंग संबंधी अशुद्धियाँ- अशुद्ध शुद्ध 1. उसने संतोष का साँस ली। उसने संतोष की साँस ली। 2. सविता ने जोर से हँस दिया। सविता जोर से हँस दी। 3. मुझे बहुत आनंद आती है। मुझे बहुत आनंद आता है। 4. वह धीमी स्वर में बोला। वह धीमे स्वर में बोला। 5. राम और सीता वन को गई। राम और सीता वन को गए। (3) विभक्ति-संबंधी अशुद्धियाँ- अशुद्ध शुद्ध 1. मैं यह काम नहीं किया हूँ। मैंने यह काम नहीं किया है। 2. मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ। मैं पुस्तक पढ़ता हूँ। 3. हमने इस विषय को विचार किया। हमने इस विषय पर विचार किया 4. आठ बजने को दस मिनट है। आठ बजने में दस मिनट है। 5. वह देर में सोकर उठता है। वह देर से सोकर उठ

वचन Numbers

वचन परिभाषा-शब्द के जिस रूप से उसके एक अथवा अनेक होने का बोध हो उसे वचन कहते हैं। हिन्दी में वचन दो होते हैं- 1. एकवचन 2. बहुवचन एकवचन शब्द के जिस रूप से एक ही वस्तु का बोध हो, उसे एकवचन कहते हैं। जैसे-लड़का, गाय, सिपाही, बच्चा, कपड़ा, माता, माला, पुस्तक, स्त्री, टोपी बंदर, मोर आदि। बहुवचन शब्द के जिस रूप से अनेकता का बोध हो उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे-लड़के, गायें, कपड़े, टोपियाँ, मालाएँ, माताएँ, पुस्तकें, वधुएँ, गुरुजन, रोटियाँ, स्त्रियाँ, लताएँ, बेटे आदि। एकवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग (क) आदर के लिए भी बहुवचन का प्रयोग होता है। जैसे- (1) भीष्म पितामह तो ब्रह्मचारी थे। (2) गुरुजी आज नहीं आये। (3) शिवाजी सच्चे वीर थे। (ख) बड़प्पन दर्शाने के लिए कुछ लोग वह के स्थान पर वे और मैं के स्थान हम का प्रयोग करते हैं जैसे- (1) मालिक ने कर्मचारी से कहा, हम मीटिंग में जा रहे हैं। (2) आज गुरुजी आए तो वे प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। (ग) केश, रोम, अश्रु, प्राण, दर्शन, लोग, दर्शक, समाचार, दाम, होश, भाग्य आदि ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग बहुधा बहुवचन में ही होता है। जैसे- (1) तुम्हारे केश बड

विशेषण Adjective

विशेषण विशेषण की परिभाषा- संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द ‘विशेषण’ कहलाते हैं। जैसे-बड़ा, काला, लंबा, दयालु, भारी, सुन्दर, कायर, टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आदि। विशेष्य- जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द की विशेषता बताई जाए वह विशेष्य कहलाता है। यथा- गीता सुन्दर है। इसमें ‘सुन्दर’ विशेषण है और ‘गीता’ विशेष्य है। विशेषण शब्द विशेष्य से पूर्व भी आते हैं और उसके बाद भी। पूर्व में, जैसे- (1) थोड़ा-सा जल लाओ। (2) एक मीटर कपड़ा ले आना। बाद में, जैसे- (1) यह रास्ता लंबा है। (2) खीरा कड़वा है। विशेषण के भेद- विशेषण के चार भेद हैं- 1. गुणवाचक। 2. परिमाणवाचक। 3. संख्यावाचक। 4. संकेतवाचक अथवा सार्वनामिक। 1. गुणवाचक विशेषण जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के गुण-दोष का बोध हो वे गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं। जैसे- (1) भाव- अच्छा, बुरा, कायर, वीर, डरपोक आदि। (2) रंग- लाल, हरा, पीला, सफेद, काला, चमकीला, फीका आदि। (3) दशा- पतला, मोटा, सूखा, गाढ़ा, पिघला, भारी, गीला, गरीब, अमीर, रोगी, स्वस्थ, पालतू आदि। (4) आकार- गोल, सुडौल, नुकीला, समान

कारक

कारक परिभाषा-संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सीधा संबंध क्रिया के साथ ज्ञात हो वह कारक कहलाता है। जैसे-गीता ने दूध पीया। इस वाक्य में ‘गीता’ पीना क्रिया का कर्ता है और दूध उसका कर्म। अतः ‘गीता’ कर्ता कारक है और ‘दूध’ कर्म कारक। कारक विभक्ति- संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, आदि जो चिह्न लगते हैं वे चिह्न कारक विभक्ति कहलाते हैं। हिन्दी में आठ कारक होते हैं। उन्हें विभक्ति चिह्नों सहित नीचे देखा जा सकता है- कारक विभक्ति चिह्न (परसर्ग) 1. कर्ता ने 2. कर्म को 3. करण से, के साथ, के द्वारा 4. संप्रदान के लिए, को 5. अपादान से (पृथक) 6. संबंध का, के, की 7. अधिकरण में, पर 8. संबोधन हे ! हरे ! कारक चिह्न स्मरण करने के लिए इस पद की रचना की गई हैं- कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान। संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान।। का, के, की, संबंध हैं, अधिकरणादिक में मान। रे ! हे ! हो ! संबोधन, मित्र धरहु यह ध्यान।। विशेष-कर्ता से अधिकरण तक विभक्ति चिह्न (परसर्ग) शब्दों के अंत में लगाए जाते हैं, किन्तु संबोधन कारक के चिह्न-हे, रे, आदि प्रायः शब्द से पूर्व